(एक नारी का जीवन सच में काफ़ी संघर्ष पूर्ण है और उसी को व्यक्त करने का एक प्रयास....)
क्या है एक नारी का जीवन???
पहले बेटी , बहन फिर पत्नी , बहु और माँ... फिर किसी की दादी ,किसी की नानी और न जाने ऐसे कितने ही रिश्ते ...
इन रिश्तों के बीच उसकी पहचान कहीं खो सी जाती है...
क्या है उसकी पहचान शायद वो जानती ही नही...
क्या है एक नारी का जीवन???
क्या कभी वो अपनी खुशी के लिए जी पाती है,, शायद वो अपनी खुशी के बारे में जानती ही नही या कह सकते हैं सोचती ही नही...
अपने परिवार की ही खुशियाँ क्या काफी नही ??? यही सब सोच उसने अपने बारे में कभी सोचा ही नही ...
क्या यही है एक नारी का जीवन??
हर एक बन्दा चाहे उस पर विचार अपने थोपना ,, चाहे हो पिता, बेटा, माँ, सास या फिर सजना अपना... क्या सोचा उसका भी है अरमान अपना,, कि वो भी सच कर सके सपना अपना.... किसी ने कभी उसका कोई अरमान ना जाना....
क्या यही है एक नारी का जीवन??
कहने को तो लोग हमेशा कहते हैं :-
"नारी का सम्मान, राष्ट्र का निर्माण"
क्या कभी किसी ने इस वाक्य को माना??
क्या सच में नारी का सम्मान करना जाना??? जाना तो सिर्फ़ उसे एक खिलौना जाना ... आदर की नज़रों से एक स्त्री को देखना भी जाना तो एक गुनाह जाना... नारी ने कभी क्या है ये कहाँ जाना??
क्या यही है एक नारी का जीवन??
क्या यही है एक नारी का जीवन??
ख़ुद में अनसुलझी रहती है हर नारी... हर किसी काम के लिए उसे रहना पड़ता आभारी... आत्मनिर्भर कभी हो पाई है क्या नारी?? हाँ कहती जरुर है ख़ुद को self- depend... लेकिन सच क्या है ये जाने है हर नारी...
क्या यही है एक नारी का जीवन??
अरमान रहता हर नारी का, कि उसकी भी अपनी पहचान हो॥ पर होता क्या है?? हर एक पल वो किसी अलग बन्दे की वजह से जानी जाती है, उसकी ख़ुद की ना कोई पहचान है,, इस अरमान को पूरा करने को ये बेताब है॥
ये हो नहीं सकता कभी,, उसे इसका भी आगाज़ है। नारी जीवन की व्याख्या का न कभी अंत है॥
हाँ, सच है नारी जीवन का व्याख्यान अनंत है,,
बस यही है नारी जीवन,, हर पल मिलता उसे एक नया जीवन,,
बस यही है नारी जीवन,,हाँ यही है नारी जीवन...
सहना, सहना,सहना और हर वक़्त कुछ ना कुछ सहना...
यही है एक नारी का आनुवंशिक गहना...
बर्दाश्त की मूरत है नारी,, और जो नहीं कर पाती बर्दाश्त.... नहीं रह पाती इस धरती पर वो नारी.....
लेकिन एक बात समझ नहीं आती कि लोगों ने लिखा तो सिर्फ़ लिखा नारी का जीवन!! क्यों?? क्या एक पुरूष का जीवन उल्लेखनीय नहीं ?? क्या उसके बारे में कभी नहीं लिखा जाना चाहिए?? क्यों?? क्या उनके जीवन में संघर्ष नहीं?? हमेशा स्त्री का संघर्ष क्यों सर्वोपरि रखा जाता है?? कहने को तो स्त्री-पुरूष एक समान माने गए हैं। फिर भी हम सिर्फ़ स्त्री जीवन का ही उल्लेख करते हैं,क्यों ? जबकि सभी जानते हैं कि सबका जीवन संघर्षमय है, फिर चाहे वो एक नवजात शिशु ही क्यों न हो। मैं जहाँ तक समझती हूँ, उससे ये ज़रूर कहूँगी कि पुरूष या स्त्री सब के संघर्ष समान हैं तो दोनों का ही उल्लेख किया जाना चाहिए। हाँ, आज भी लोग स्त्री को छोटा दिखाने की भरपूर कोशिश करते हैं। मनुष्य जीवन आधुनिकता के मध्य तक तो आ ही चुका होगा लेकिन आज भी लोग सिर्फ़ तन से,कपडों और वेशभूषा से ही विकसित हो पाए हैं, मन से नहीं। लेकिन आज की ज़रूरत है लोगो का मन से विकसित होना अर्थात आधुनिक होना,अर्थात अपने विचारों को आधुनिक करना,इन्हे विकसित करना।सभी का समान भाव से देखे जाना। इसलिए स्त्री हो या पुरूष सभी के जीवन का उल्लेख होना ही चाहिए। ये बात तो बिल्कुल सत्य है कि नारी जीवन अधिक कठिन है क्योंकि उसे हमेशा ही दबाया गया है लेकिन आज नारी अपने आप को साबित करने की यथावत कोशिश कर रही है। लेकिन जैसे हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, उसी तरह अगर इस तथ्य के दूसरे पहलू को देखें तो एक पुरूष भी उतना ही संघर्ष करता प्रतीत होगा। उसे भी तो कई जिंदगियां जीनी होती हैं... एक स्त्री की ही भांति....
नर जीवन ....
कहने को तो एक पुरूष जीवन बहुत ही अच्छा माना जाता है.... और है भी,लेकिन संघर्ष तो कम नहीं इसमे भी.....
एक बेटा,जब जन्म लेता है,अनेकों खुशियाँ मनाई जातीं हैं...
एक वंशज जो मिलता है घर को...
धीरे-धीरे वह बड़ा हुआ... पंहुचा अपनी जवानी की
पहली सीढ़ी पर
और शुरू होती है संघर्षों की बेला
पहला संघर्ष
जब माँ-बाप की उम्मीदें उछाल मारती हैं
और बेटा जब चाह के भी पूरा नही कर पाता,और
फिर ताने
अब उसकी दूसरी सीढ़ी
जब वह बनता है एक पति
माँ-बाप के साथ-साथ एक और की उम्मीदें
जो है उसकी पत्नी
अब शुरू दूसरा संघर्ष
जब उम्मीदें पूरी करने के साथ ही
उसे पिसना पड़ जाता है, माँ और पत्नी के बीच
और उसके पास कोई रास्ता नही
पिसने के सिवा इन दो पाटों के बीच
जिसकी ना सुनो वो ही परेशान
फिर दोनों के ताने
और दोनों ही तो प्यारी हैं,फिर क्या करे इंसान??
और साथ ही वो है एक भाई...
जिसे करनी है अपनी बहन की बिदाई॥
इसके लिए भी संघर्ष
क्या होगा?? गर जोड़ी अच्छी न मिलाई??
और अब तीसरी सीढ़ी
जब बनता है एक पिता....
एक और नया संघर्ष,,,
बच्चों को जो पढाना है,,अच्छे संस्कार सिखाना है...
उनके हर अरमानों को जो पूरा करना है।
और संघर्षो का सिलसिला चलता रहता है,,
चलता रहता है....
लेकिन इतने संघर्षों के बाद भी उसे फल क्या मिलता है??
माँ से बुराई,, पत्नी से बुराई, इतना सब कुछ मिलता है। साथ ही जिन बच्चों के लिए दिन-रात मेहनत करता है। उनसे भी मिलता है तो सिर्फ़ उलाहना-"आख़िर आपने किया ही क्या है??" और फिर ताने....
इतने संघर्षों के बाद भी मिलते हैं तो सिर्फ़ ताने। और इन्ही तानो-बानों को बुनता, मिल जाता है माँटी में और तब कहीं जाकर उसे मिलते है संघर्षों से छुटकारा....
जब वो धरती माँ की गोद में जा लेटता है और धरती माँ देतीं उसे प्यार अपना सारा......